योग(Yoga) का अर्थ होता है आत्मा का परमात्मा से मेल हो जाना; यह एक प्राचीन भारतीय वैदिक आध्यात्मिक विज्ञान है, इसमें शरीर को निरोगी बनाकर मन व इन्द्रियों को वश में किया जाता है। योग के द्वारा ध्यान का अभ्यास कर के समाधि को प्राप्त किया जाता है। जो व्यक्ति योग में पूर्णता प्राप्त कर लेता है, उसको योगी कहते है और वह मोक्ष की अवस्था को प्राप्त हो जाता है। हालांकि, सभी व्यक्ति पूर्ण योगी नहीं होते है, क्योंकि योग में विभिन्न प्रकार के तल होते है, केवल वह साधक पूर्ण योगी कहलाता है जिसकी 16 कलाएं सिद्ध हो जाती है। भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते है, योग ब्रह्म प्राप्ति का एक अत्यंत दुर्लभ साधन है।
- योग विद्या भारत देश की अमूल्य धरोहर है, जो प्राचीन वैदिक ऋषियों के द्वारा समाधि अवस्था में खोजा गया ईश्वरकृत ज्ञान है। योग द्वारा ही भारतीय ऋषि, मुनि, साधु-संत एवं अन्य व्यक्ति ईश्वर की अनन्य भक्ति व शक्ति प्राप्त करते थे।
- योग सांसारिक माया व बंधनों से छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता है. यह मार्ग प्रारम्भ में विष के समान परंतु बाद में अमृत की तरह कार्य करता है।
- योग आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाला सेतु है, इस विज्ञान के द्वारा मनुष्य अपने हृदय कोश में स्थित ब्रह्मा को प्राप्त कर सकता है।
- योग मनुष्य के तन व मन को स्वस्थ बनाने का अचूक शारीरिक अभ्यास है, योग करने वाले व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता साधारण मनुष्य से कई गुना अधिक होती है। इसलिए एक योगी दीर्घ आयु को प्राप्त होता है।
- योग जीवन जीने की सर्वोत्तम कला है, यह व्यक्ति को जानवर से देव बनाकर उसका जीवन भर मार्गदर्शन करता रहता है।
- योग मनुष्य को असभ्य से सभ्य बनाने का सही रास्ता है, योग प्रक्रिया में व्यक्ति के भीतर के गुणों को उजागर किया जाता है। जिससे व्यक्ति का यशस्वी चरित्र निर्माण हो जाता है।
- वेदों में योग को श्रेष्ठ कर्म की संज्ञा दी गई है, जिस व्यक्ति का योग सिद्ध हो जाता है वह परम शांति को प्राप्त कर लेता है और प्रजा के लिए मार्गदर्शन का कार्य करता है।
- योग चित्त को एकाग्र कर देता है, जिससे मनुष्य का मन उसके वश में आ जाता है। योग इन्द्रियों को कामवासना से रोकने का एकमात्र रास्ता है, यह सभी इन्द्रियों को संतुलित कर आत्मा के अधीन कर देता है। ऐसे योगी जितेन्द्रिय कहलाता है।
- आयुर्वेद ने योग का विशेष गुणगान किया है, आयुर्वेद कहता है कि योग शरीर की सभी बुराई का नाश कर देता है। योग करने वाला व्यक्ति सदैव प्रसन्नता का अनुभव करता है।
- योग विज्ञान में शरीर के भीतर स्थित आठ चक्र- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा, मनश्चक्रे, सहस्रार चक्र को जागृत कर संतुलित किया जाता है, ताकि शारीरिक शक्तियों का पूर्ण लाभ लिया जा सके।
योग निरोगी शरीर प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है।
संसार में एकमात्र योग विद्या ही ऐसी है जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति निरोगी शरीर प्राप्त कर सकता है। योग में विभिन्न प्रकार के आसन, प्राणायाम व ध्यान प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है। आसनों के द्वारा शरीर के मांसपेशियों व अंगो को स्वस्थ किया जाता है; जबकि प्राणायाम के माध्यम से प्राणों को वश में कर के ब्रह्मचर्य को सिद्ध किया जाता है। इसके पश्चात ही एक योगी ध्यान की अन्तिम अवस्था तक पहुँचता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन सही ढंग से योग करता है, एवं इसके नियमों का पालन करता है, वह व्यक्ति सदा स्वस्थ बना रहता है. ऐसे व्यक्ति युवा बना रहता है एवं दीर्घ आयु को प्राप्त हो जाता है।
योग परम सुख का द्वार है।
प्रत्येक व्यक्ति जीवन भर सुखी रहना चाहता है, परंतु वास्तव में ऐसा होता नहीं है। हमारी व्यस्त व थकान भरी दिनचर्या एवं अनंत अपूर्ण इच्छाओं के कारण हमें सदा केवल दुख ही प्राप्त होता है। किन्तु, योग विज्ञान के द्वारा मनुष्य के सभी क्लेश नष्ट हो जाते है। यह मनुष्य के भीतर उपस्थित दुखों के स्त्रोत का नाश करने में सहायक होता है। इन्द्रियाँ एवं मन ही सभी दुखों का कारण है। भौतिकवाद में डूबा मनुष्य अपनी असंख्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए जीवन भर संघर्ष करता रहता है, परंतु उसकी ये इच्छाएं कभी भी समाप्त नहीं होती है, इसलिए वह सदैव दुख सागर में डूबा रहता है। योग मनुष्य की अनंत इच्छाओं व वासनाओं पर नियंत्रण लगाकर मन को आत्मा के अधीन कर देता है। जिससे मनुष्य स्थितप्रग्य होकर संतुलित हो जाता है, और ईश्वर द्वारा बनाये गये प्राकृतिक नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत कर परम सुख की अनुभूति करता है। योग करने वाले मनुष्य का शरीर स्वस्थ, मन स्वच्छ एवं आत्मा शुद्ध हो जाती है।
योग द्वारा मोक्ष प्राप्त हो जाता है
समाज में योग के विषय में विभिन्न प्रकार की भ्रांतियां फैली हुई है, लोग योग को केवल एक्सरसाइज समझते है. परंतु, वास्तव में योग का लक्ष्य मनुष्य को मोक्ष प्रदान करना है। योगासन के माध्यम से तो केवल शरीर व अन्तःकरण का शुद्धिकरण किया जाता है, ताकि शरीर के सभी विकार दूर हो जाये। शुद्ध मन वाला साधक ही मोक्ष प्राप्ति के योग्य होता है, जब व्यक्ति योग को अपने जीवन में अपनाता है, तो उसके भीतर तमों एवं रजो गुण का नाश होकर सत्व गुण में वृद्धि हो जाती है। जब योगी अपने मन व अन्तःकरण को शुद्ध कर लेता है, तो उसके विचार शून्य अवस्था को प्राप्त हो जाते है। इस स्थिति में योगी समाधि में चला जाता है और परब्रह्म के सानिध्य को प्राप्त होकर मोक्ष का आनंद प्राप्त करता है।