भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश विघ्न हरता के देवता है और सुख के देने वाले है। इनके सिर पर सोने का मुकुट व नयन विशाल है। गणेश जी ने कुठार व त्रिशूल धारण किया हुआ है, और मोदक इन्हे अति प्रिय है। ये पीला रंग के पीताम्बर वस्त्र एवं चरणों में पादुका धारण करते है और उनका यह रूप अति मनमोहक है। भगवान गणेश मूषक की सवारी करते है, अर्थात इनका निज वाहन मूषक(चूहा) है। गणेश जी ऋद्धि-सिद्धि के दाता है. यह अति बुद्धिमान भी है।
जय गणपति सदगुण सदन ।
कविवर बदन कृपाल ॥ (1)
विघ्न हरण मंगल करण ।
जय जय गिरिजालाल ॥ (2)
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभ काजू ॥ (3)
जय गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायक बुद्धि विधाता ॥ (4)
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥ (5)
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥ (6)
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥ (7)
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥ (8)
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व विख्याता ॥ (9)
ऋद्धि सिद्धि तव चँवर सुधारे ।
मूषक वाहन सोहत द्वारे ॥ (10)
कहौं जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥ (11)
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ (12)
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥ (13)
अतिथि जानि के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥ (14)
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥ (15)
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥ (16)
गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥ (17)
अस कहि अन्तर्धान रूप हवै ।
पलना पर बालक स्वरूप हवै ॥ (18)
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥ (19)
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥ (20)
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥ (21)
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ (22)
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥ (23)
गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥ (24)
कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥ (25)
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सौ बालक देखन कहयऊ ॥ (26)
पडतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥ (27)
गिरिजा गिरि विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहिं वरणी ॥ (28)
हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥ (29)
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥ (30)
बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥ (31)
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ (32)
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥ (33)
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥ (34)
चरण मातु पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥ (35)
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥ (36)
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥ (37)
मैं मति हीन मलीन दुखारी ।
करहूँ कौन विधि विनय तुम्हारी ॥ (38)
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥ (39)
अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी भक्ति शक्ति कुछ दीजै ॥ (40)
( दोहा)
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान ॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ति गणेश ॥
श्री गणेश कौन से व किसके देवता है?
श्री गणेश माता पार्वती तथा भगवान शिव के पुत्र है, यह विघ्न हरता के नाम से जाने जाते है। क्योंकि ये अति बुद्धिमान होने से ऋद्धि सिद्धि के देने वाले है।
गणेश जी कौन से शस्त्र धारण करते है?
श्री गणेश जी ने कुठार(कुल्हाडी) व त्रिशूल आदि को धारण किया है। इनके एक हाथ में त्रिशूल व दूसरे हाथ में कुठार है। इन शस्त्रो से इन्होने कई दानवो का संघार किया है। भगवान गणेश के ये शस्त्र हमें आत्मरक्षा का संदेश देते है।
श्री गणेश जी की सवारी(वाहन) कौन सा है?
भगवान श्री गणेश जी की सवारी मूषक अर्थात चूहा है। यह इनका प्रिय वाहन है, इसी की सवारी कर के इन्होने बहुत से युद्ध जीत है। तथा राक्षसो का संघार किया है।