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Where is God in Hindi : भगवान कहां रहते हैं

Where is God in Hindi

भगवान(God) इस ब्रह्मांड के भीतर व बाहर प्रत्येक जगह स्थित है, दुनिया में ऐसी कोई भी जगह नहीं है जहाँ भगवान न हो। इसी कारण भगवान को सर्वव्यापी कहा जाता है, क्योंकि वह ईश्वर अपनी अनंत शक्ति व सामर्थ्य से सभी जीवों में, वस्तुओं और भूतों में पूर्ण रूप से विद्यमान है। वह परमात्मा हम सभी मनुष्य के भीतर हृदय-गुहा में विचरता है, उसे देखने के लिए हमें अपने अंतःकरण में ध्यान लगाने की आवश्यकता होती है। 

हम सभी को यह बात ज्ञान पूर्वक जान लेनी चाहिए कि वह परमेश्वर अपने सामर्थ्य से तीनों कालों में सभी जगह समान रूप से व्याप्त हो रहा है, न घटता है और न ही बढता है। ईश्वर का मूल स्वरूप निराकार होने के कारण वह अनंत है, इसलिए सर्वव्यापक है। इस ब्रह्मांड में ऐसी कोई भी जगह नहीं है, जहा वह मौजूद न हो। वास्तव में यह समस्त सृष्टि उसी परम ऐश्वर्य के स्वामी के भीतर स्थित है। यजुर्वेद कहता है कि अहं ओ3म् खम् ब्रह्म अर्थात मै ईश्वर हू मेरा निज नाम ओम है और मै आकाश के समान व्यापक हू।

ईश्वर प्रत्येक जगह रहते है

ईश्वर सर्वव्यापक होने के कारण ब्रह्मांड के कण-कण में विराजमान है, वेद कहता है कि वर परमपिता परमेश्वर सर्व भूतों के भीतर स्थित है और ये सभी भूत(प्रकृति, पदार्थ, काल) उस परम ऐश्वर्य के स्वामी में समाये है। जिस प्रकार लोहे के एक गोले को अग्नि में तपा देने पर वह लाल हो जाता है और अग्नि उसके बाहर व भीतर विराजमान हो जाती है। उसी प्रकार ईश्वर संसार के बाहर व भीतर प्रत्येक जगह हमेशा विद्यमान रहते है। उपनिषदों ने भी कहा कि जहाँ कोई मन की गति से भी जावे, वहाँ पहले से ही ईश्वर को पावें. इसलिए ईश्वर हर जगह रहते है कोई मनुष्य उनकी दृष्टि से नहीं बच सकता है।

ईश्वर सभी पदार्थों में स्थित है, परंतु स्वयं पदार्थ नहीं है

एक बात हमें अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि ईश्वर ब्रह्मांड के प्रत्येक पदार्थ के बाहर भीतर रहते, परंतु इसका यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि वह भी एक पदार्थ है, नहीं ऐसा नहीं है। क्योंकि ईश्वर का मूल रूप निराकार है, जबकि पदार्थ आकर वाले होते है। सभी पदार्थ प्रकृति तत्व से बनते है। ईश्वर, जीव एवं प्रकृति तीनो एक दूसरे से भिन्न है. प्रकृति व जीव सदैव ईश्वर के सानिध्य में रहते है।  

ईश्वर से बढ़कर इस दुनिया में कोई शक्ति नहीं होती

ईश्वर सभी शक्तियों का स्रोत है, परंतु उसे अपने कार्य करने के लिए किसी अन्य की आवश्यकता नहीं होती है, वह जो चाहता है वह कर सकता है इसलिए उसे सर्वशक्तिमान के नाम से जाना जाता है। समस्त संसार को बनाने वाला तथा मिटाने वाला वह ईश्वर ही है। सभी जीव उसी की आज्ञा से जन्म पाते है, वह परमपिता जीवों के कर्मानुसार उन्हें शरीर प्रदान करता है। उस ईश्वर को जानने के लिए योगाभ्यास द्वारा समाधि को प्राप्त कर जाना जा सकता है।

ईश्वर की सत्ता को कोई नहीं मिटा सकता

यह बात अत्यन्त सत्य है कि ईश्वर की सत्ता को मिटा पाना असम्भव है, मनुष्य चाहे जितना भी प्रयास कर ले किन्तु वह प्रकृति के नियमों को नहीं बदल सकता है, और न ही उन नियमों के विपरीत कार्य कर सकता है। मनुष्य ईश्वर के सामने लाचार है, वह सिर्फ परमपिता द्वारा बनाए गए पदार्थो का भोग कर सकता है। जब कोई प्राकृतिक आपदा- बाढ, भूकम्प, बादल फटना, आकाशीय बिजली गिरना, चक्रवात, तूफान आदि आता है तो मनुष्य उसे रोकने में असमर्थ रहता है। इसी बात से कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति अंदाजा लगा सकता है कि ईश्वर की सत्ता अमिट व अनंत है।

ईश्वर की पहचान कैसे हो सकती है

ईश्वर की पहचान बुद्धि से होती है, जो व्यक्ति अपने विवेक द्वारा इस संसार व समस्त सृष्टि की संरचना एवं व्यवस्था को थोड़ा सा भी समझ ले तो वह ईश्वर की सत्ता को स्वीकार कर लेता है। ईश्वर को जानने के लिए इस प्रकृति को जानना परम आवश्यक है। बिना कारण संसार में कुछ भी घटित नहीं होता। इसे चलाने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। 

उदाहरण

इस संसार में तथा सारे ब्राह्मण में सब कुछ( सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, विज्ञान के नियम, भोजन चक्र, वर्षा, गर्मी, सर्दी, जन्म, मृत्यु आदि) बहुत ही सुचारू एवं पूर्ण से सही ढंग से लगातार चल रहा है। अगर हम विवेक का प्रयोग करें तो पाएंगे कि यह सब कुछ स्वंय व्यवस्थित नहीं हो सकता है। इसे चलाने तथा व्यवस्थित करने के लिए किसी न किसी की आवश्यकता तो पडेगी।

ईश्वर की उत्पत्ति कैसे हुई है?

ईश्वर की उत्पत्ति कभी नहीं होती है, वह तो अजन्मा है। वह सभी कारणों का कारण है, परंतु उसका कारण कोई नहीं है। यह सारी सृष्टि , सारे पदार्थ, सभी जीव, सारे भूत व लोक उस ईश्वर के भीतर समाये हुए है और उसी की इच्छा से अपने स्वरूप को प्राप्त करते है।

ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई?

ब्रह्मांड भी एक अनादि तत्व है, परंतु यह भगवान के अधीन है। प्रलय काल में सारी सृष्टि नष्ट होकर अपने सूक्ष्म रूप में आ जाती है, और ईश्वर के अधीन रहती है। उसके पश्चात परमेश्वर अपने अनंत सामर्थय से वेद की ऋचाओं से इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति करते है।

अन्न की उत्पत्ति कैसे हुई ?

अन्न की उत्पत्ति प्रकृति पदार्थ से होती है, जब यह सृष्टि बनती है तो उससे ‘महतत्व’ का निर्माण होता है, जिससे सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी आदि लोक उत्पन्न होते है। पृथ्वी आदि ग्रहो पर जीवन का कारण सूर्य है, सूर्य की किरणों के द्वारा आकाश में वर्षा होती है, जिससे धरती में उपस्थित प्रकृति के सूक्ष्म कण सूर्य के ताप से अंकुरित होकर अपने स्वरूप को प्राप्त होते है। तथा वायु, सूर्य, चन्द्रमा से अपना भोजन प्राप्त करते है।

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