वेद समस्त सत्य विद्याओ(Truth Education) का ग्रन्थ है, व ईश्वरकृत वाणी है न कि मनुष्यकृत। यह संस्कृत भाषा में लिखे हुए है। वेद सभी शाश्वत ज्ञान और विज्ञान का भंडार है। इसके द्वारा ब्रह्मा, प्रकृति व जीव के गुण कर्म स्वभाव तथा कार्य एवं कारण को जाना जाता है। सृष्टि रचना काल में स्वयं परमेश्वर ने वेदो का अनंत ज्ञान 4 ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को दिया था। वेद ज्ञान ऋषियों को समाधि अवस्था में प्राप्त हुआ. इसलिए वेदों को श्रुति(सुना हुआ ज्ञान) भी कहते है। वेदों की कुल संख्या चार है इसमें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, तथा अथर्ववेद है। ऋग्वेद सबसे पहला व बड़ा है एवं इसका विषय ‘ज्ञान’ है। वेदों के चार उपवेद क्रमशः आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद, व अर्थवेद है। वेद सनातन संस्कृति का मूल है. जितने भी आर्ष शास्त्र है उन सभी में कही न कही वेदों के ही सूत्र व शिक्षा है। जो कोई ग्रन्थ वेद विरूद्ध बात करता है वह असत्य माना जाता है।
वेदों में किसी भी प्रकार का इतिहास नहीं है, क्योंकि वेद की ऋचाओ से ही इस सृष्टि का निर्माण व अन्त होता है। वेद विद्वान लोगों को आर्य तथा दुष्ट, मूर्ख को अनार्य या दसयु कहता है। वेद कहता है कि सभी मनुष्य को ईश्वर की का आज्ञा का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। वेद का आदेश है कि सत्य के मार्ग पर चलते हुए प्रकृति संरक्षण तथा जीवो पर दया करना समस्त मनुष्य का धर्म है। इसमे कर्म को श्रेष्ठ बताया गया है. मनुष्य का कर्म अच्छा हो या बुरा इसका पर्याप्त फल अवश्य मिलता है।
वेद का अर्थ
- वेद सभी सत्य विद्याओ व ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ भंडार है, इसमें ब्रह्मविद्या से लेकर प्रकृति व जीव के सभी कार्य एवं कारण का उल्लेख किया गया है।
- वेद का ज्ञान नित्य है, कभी न मिटने वाला है, शाश्वत है, इसे तर्क से भी नहीं काटा जा सकता है। सभी स्थितियों व कालों में यह वैदिक ज्ञान एक जैसा ही बना रहता है। इसे मिटाया नहीं जा सकता है क्योंकि यह स्वंय सत्य का रूप है।
- वेद ईश्वर द्वारा दिये गया ज्ञान है, जो कि सृष्टि बनाते के बाद सर्वप्रथम 4 ऋषियो अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को समाधि अवस्था में प्राप्त हुआ था, बाद में यह ज्ञान एक ऋषि ने दूसरे ऋषि को प्रदान किया।
- वेदों की भाषा संस्कृत है इनके भीतर कर्मकाड़ से लेकर ज्ञान- विज्ञान, उपासना से सम्बन्धित मंत्र है।
- ईश्वर वेद के द्वारा मनुष्यों को आदेश देते है कि हे मनुष्यों तुम सदा सत्य के मार्ग पर चलों, और ज्ञान के प्रकाश को फैलाते रहो। तुम योग भक्ति द्वारा मोक्ष को प्राप्त होकर परम सुख का आनंद प्राप्त करों।
- वेदो में किसी भी प्रकार का कोई इतिहास नहीं है, क्योंकि वेदो का निर्माण मनुष्यों के जन्म से पहले हो चुका था. वेद कभी न समाप्त होने वाले सूत्र है जो प्रलयकाल में भी ज्यो के त्यो बने रहते है।
- वेद कहता है कि सभी मनुष्य कर्म करते हुए सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करेे, परंतु कर्म में लिप्त न होवें।
- वेद में ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ नाम ओ३म् है, यजुर्वदे 40.17 मंत्र में ईश्वर स्वयं अपना नाम ओ३म् बताते है। ‘अहम् ओ३म् खं ब्रह्म’
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वेदों के प्रकार व संख्या कितनी है
वेदो की कुल संख्या चार है। चारो वेदों में तीन प्रकार के मंत्र ऋक्, यजु व साम है.
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- सामवेद
- अथर्ववेद
वेदों के उपवेद कितने व कौन से है
वेदों के उपवेद 4 है।
- ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद
- यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद
- सामवेद का उपवेद गंधर्ववेद
- अथर्ववेद का उपवेद अर्थवेद
वेद किसने लिखे, इनका लेखक कौन है
वेद ईश्वरकृत वाणी है, अर्थात वेद का ज्ञान परमपिता ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न किया गया है। जब ईश्वर ने सृष्टि की रचना की तो सर्वप्रथम चार ऋषियों- अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, तथा अथर्ववेद क्रमशः वेदो का ज्ञान समाधि स्थिति में दिया। यह ज्ञान ऋषियों ने सुनकर प्राप्त किया अतः वेदो को श्रुति भी कहा जाता है। उसके पश्चात यह ज्ञान एक ऋषि ने दूसरे ऋषि को दिया। तत्पश्चात प्रजा को यह वेद ज्ञान ऋषियों ने प्रदान करा। यह नियम इसी प्रकार चलता रहता है अर्थात जब ईश्वर प्रलयकाल के बाद सृष्टि निर्माण करेंगे तब भी चारों वेदो का ज्ञान चार ऋषियों को ही प्रदान करेंगे। वेद को पुस्तक के रूप में लिखने का प्रचलन बहुत बाद में प्रारम्भ हुआ। महाभारत काल तक भी वेद श्रुति के रूप में ही ग्रहण किये जाते थे। पहले के समय में गुरू वेद का उपदेश करते एवं शिष्य सुनकर उसे याद कर लेते थे। परंतु जब मनुष्य भ्रष्ट होने लगा तो वेद के ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए लिखित रूप में इसका संरक्षण किया गया ताकि आने वाली पीढ़ी इसे प्राप्त कर सके।
यजुर्वेद मंत्र 31.7 के अनुसार वेद ईश्वरकृत है
यजुर्वेद के इक्कतीस वे अध्याय के 7वे मंत्र में चारो वेदो की रचना उस परमपिता परमेश्वर द्वारा की गई है, मनुष्यों द्वारा नहीं।जीवात्मा अल्पज्ञ होता है, इसलिए मनुष्यों में इतना सामर्थय नहीं की वेदो के अनंत ज्ञान की रचना कर सके। वेद पढ़ने के पश्चात ही मनुष्य इतना सक्षम हो पाया कि वह सभी विद्याओं को जानकार दूसरे ग्रंथ व पुस्तके लिख सके।
तस्मा॑द्य॒ज्ञात् स॑र्व॒हुत॒ऽऋचः॒ सामा॑नि जज्ञिरे। छन्दा॑सि जज्ञिरे॒ तस्मा॒द्यजु॒स्तस्मा॑दजायत ॥यजुर्वेद 31.7 ॥
हे मनुष्यो ! तुमको चाहिये कि (तस्मात्) उस पूर्ण (यज्ञात्) अत्यन्त पूजनीय (सर्वहुतः) जिसके अर्थ सब लोग समस्त पदार्थों को देते वा समर्पण करते उस परमात्मा से (ऋचः) ऋग्वेद (सामानि) सामवेद (जज्ञिरे) उत्पन्न होते (तस्मात्) उस परमात्मा से (छन्दांसि) अथर्ववेद (जज्ञिरे) उत्पन्न होता और (तस्मात्) उस पुरुष से (यजुः) यजुर्वेद (अजायत) उत्पन्न होता है, उसको जानो।
हे मनुष्यो ! तुमको चाहिये कि उस पूर्ण अत्यन्त पूजनीय जिसके अर्थ सब लोग समस्त पदार्थों को देते वा समर्पण करते उस परमात्मा से ऋग्वेद, सामवेद, उत्पन्न होते. उस परमात्मा से (छन्दांसि) अथर्ववेद उत्पन्न होता और उस पुरुष से यजुर्वेद उत्पन्न होता है, उसको जानो।
वेद सभी मनुष्यों को समानता का आदेश देता है
सं ग॑च्छध्वं॒ सं व॑दध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम् ।
दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥ (ऋग्वेद 10.191.2)
ऋग्वेद के इस मंत्र में भगवान सभी मनुष्यों को आदेश करते है, हे मनुष्यों तुम सब साथ मिलकर रहो आपस में विवाद मत करों अपितु संवाद करो। तुम सभी साथ मिलकर शिक्षा ग्रहण कर विद्वान हो जाओ, तुम्हारे मन एक हो जावे, जैसे पूर्व में विद्वानों के थे ताकि एकमन से गुणी होकर तुम संसार के सुख व लाभ भोग सको।
वेद पढ़ने का अधिकार किसे है
सभी मनुष्यों को वेद पढ़ने का अधिकार है, जो व्यक्ति उस पर ब्रह्मा को जानना चाहता है अथवा संसार कल्याण की भावना रखता है वेद पढ़ने योग्य है। ईश्वर ने वेद मनुष्यों के कल्याण के लिए ही सृजित किया है ताकि लोग विद्वान होकर समाज को सत्य की शिक्षा व सही दिशा प्रदान करें। धर्म के मार्ग पर चले व अविद्या का नाश करें।
यथे॒मां वाचं॑ कल्या॒णीमा॒वदा॑नि॒ जने॑भ्यः। ब्र॒ह्म॒रा॒ज॒न्या᳖भ्या शूद्राय॒ चार्या॑य च॒ स्वाय॒ चार॑णाय च। प्रि॒यो दे॒वानां॒ दक्षि॑णायै दा॒तुरि॒ह भू॑यासम॒यं मे॒ कामः॒ समृ॑ध्यता॒मुप॑ मा॒दो न॑मतु ॥ यजुर्वदे 26.2
परमात्मा सब मनुष्यों के प्रति इस उपदेश को करता है कि यह चारों वेदरूप कल्याणकारिणी वाणी सब मनुष्यों के हित के लिए मैंने उपदेश की है, इस में किसी को अनधिकार नहीं है, जैसे मैं पक्षपात को छोड़ के सब मनुष्यों में वर्तमान हुआ पियारा हूँ, वैसे आप भी होओ। ऐसे करने से तुम्हारे सब काम सिद्ध होंगे
क्या उपनिषद भी वेद ही है
सनातन शास्त्रो में उपनिषद का महत्वपूर्ण स्थान है। उपनिषद वेद मंत्रों की व्याख्या है, यह ऋषियों द्वारा लिखे गये ग्रन्थ है। सभी उपनिषदों में ईशोपनिषद को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है, यह उपनिषद यजुर्वेद का 40वा अध्याय की व्याख्य है इसमें ब्रह्मविद्या का वर्णन है।
वेद किसने लिखे है, चारो वेदो के रचयिता कौन है?
चारो वेदों के रचयिता स्वयं परमपिता परमेश्वर है। जब ईश्वर ने सृष्टि की रचना की तो सर्वप्रथम चार ऋषियों- अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, तथा अथर्ववेद क्रमशः वेदों का ज्ञान समाधि स्थिति में दिया। इसके पश्चात यह ज्ञान इन चारो ऋषियों के माध्यम से दूसरे ऋषियों मुनियो आदि को प्राप्त हुआ।
सबसे बड़ा वेद कौन सा है?
ऋग्वेद सबसे बड़ा वेद है, इसे ऋग्वेद संहिता के नाम से भी जाना जाता है। इसकी मंत्रो को ऋचाएं कहते है, ऋग्वेद के बहुत सारे मंत्र अन्य तीनो वेदो में देखने को मिलते है।
उपवेद किसे कहते है?
वेदों को पढ़कर ऋषियों ने इनके भीतर स्थित श्रेष्ठ विद्याओ को जानकर, वैद्यक शास्त्र, राजपाठ, गायन विद्या व संगीत, तथा शिल्पकला के विशेष ज्ञान की खोज की। इसलिए ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद(वैद्यक शास्त्र), यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद(राजपाठ), सामवेद का उपवेद गंधर्ववेद(गायन विद्या व संगीत), अथर्ववेद का उपवेद अर्थवेद(शिल्पकला ) है।