सनातन धर्म(Truth) वह ज्ञान है जो सदा से विराजमान एवं अमिट है. यह सत्य का ही दूसरा नाम है, इसकी उत्पत्ति ईश्वरकृत वेदों से हुई है: इसलिए इसे सत्य सनातन वैदिक धर्म कहा जाता है। यह धर्म भारत भूखंड में पाया जाता है- शाश्वत होने के कारण इसका अंत नहीं किया जा सकता. इसलिए इसको अनश्वर(सदैव रहने वाला) कहते है। सनातन धर्म परमेश्वर से निकला हुआ सत्व रूप है; सृष्टि उत्पत्ति हो या प्रलय काल हो यह धर्म प्रत्येक स्थिति में ज्यों का त्यों बना रहता है। हालांकि प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक कई विपरीत शक्तियों ने इसे मिटाने की कोशिश की, पर यह मिट न सका।
सनातन धर्म कहता है सदा सत्य का पालन करें व असत्य का खंडन कर दो. सनातन वैदिक शास्त्र कहते है कि अधर्म को नष्ट करने के लिए विद्वानों को समाज में अच्छाई का प्रचार करना चाहिए, ताकि सभी लोग बुराई को छोड़कर ज्ञानी बन जाये। विश्व में शांति स्थापित करना सनातन का परम लक्ष्य है. इसलिए यह धर्म विश्व को अपना परिवार मानता है और कहता “वसुधैव कुटुम्बकम”
सनातन धर्म का अर्थ
- सनातन धर्म का अर्थ होता है, सत्य. अर्थात सत्य का शासन।
- सनातन धर्म का उदय परमपिता ब्रह्मा(ईश्वर) से हुआ. उन्होने 4 वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के माध्यम से विश्व को सभ्यता प्रदान की है। इस सभ्यता का लक्ष्य मानव कल्याण करते हुए शांति भरा जीवन जीना है।
- सनातन धर्म सभी मनुष्यों, पशु पक्षियों, और जीव जन्तुओं आदि को एक समान मानता है। वैदिक सनातन शिक्षा सभी जीवों पर दया करने का आदेश देती है। परन्तु, दुष्टों व राक्षसों के लिए कड़ा दंड देने को कहा गया है।
- गीता में सनातन शब्द का कई बार वर्णन आता है, भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सनातन धर्म का उपदेश करते हुए कर्तव्य पालन(धर्म युद्ध का पालन) करनी शिक्षा दी है। कृष्ण अर्जुन को सनातन के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान देते हुए उसे धर्म-रक्षा करने के लिए युद्ध करने को बार-बार प्रेरित करते है।
- सनातन धर्म सुखमय जीवन व्यतीत करने की वैज्ञानिक कला है, इसने संसार को योग, आयुर्वेद, संगीत, नृत्य, शिल्प विद्या, अध्यात्म आदि महत्वपूर्ण संसाधन व विद्यायें प्रदान की है। सनातन की शिक्षाओं के कारण ही भारत विश्व गुरु कहलाता था, परंतु जब भारतीय लोग सनातन मान्यताओं की अवहेलना करने लगे तो इसका पतन आरम्भ हो गया; परिणाम यह हुआ कि विदेशी आक्रमणकारी मुगल, तुर्क, ब्रिटिश आदि ने भारत को गुलाम बना लिया।
- सनातन धर्म सूर्य के समान प्रकाशित होता है और बुराई को नष्ट करता चला जाता है। इसलिए इसका पतन करना असम्भव है, हालांकि जब समाज में अधर्म(evil) बढ़ता है तो सनातन थोड़ा विवश प्रतीत होता परंतु यह पुनः अपनी शक्ति को जागृत कर अधर्म का नाश कर देता है. इसलिए वेदों ने सनातन को शाश्वत(eternal) की संज्ञा दी है।
- संसार में एकमात्र सनातन धर्म ही जहां पर स्त्री को पुरुष से उच्च दर्जा दिया गया है. सनातन धर्म ने प्रकृति, गाय, पृथ्वी को इनके गुणों के कारण माँ का स्थान दिया है। इस धर्म में माता को सर्वोच्च गुरु माना जाता है, क्योंकि एक माता ही अपने बच्चों के लिए अपने प्राण भी न्योछावर करने को तैयार रहती है। सनातन धर्म में विभिन्न स्त्री देवियों रूप की माँ दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती, आदि के रूप में आराधना की जाती है। सनातन धर्म सभी स्त्रीयों को पुरूषों की भाति शस्त्र व अस्त्र धारण करने का अधिकार देता है।
- वेदों में सनातन धर्म स्त्रियों के विषय में कहता है कि, प्रत्येक स्त्री को उच्च शिक्षित होना परम आवश्यक है, क्योंकि एक गुणी व शिक्षित स्त्री अपने बच्चों का श्रेष्ठ पालन पोषण एवं चरित्र निर्माण सही ढंग से करती है. और साथ ही बच्चों को सत्य की शिक्षा देती है ताकि वे बुराई से सदैव दूर रहे। इसलिए एक शिक्षित व गुणी स्त्री ही श्रेष्ठ समाज का निर्माण करने में सक्षम है।
- सनातन धर्म सभी मनुष्यों को प्रकृति व इसके संसाधनों की रक्षा करने का आदेश देता है। क्योंकि प्रकृति ही सभी मनुष्य व जीवों के भोजन, जल, वायु, घर, उपचार, वस्त्र, ईंधन आदि की व्यवस्था करती है। इसलिए वेदों में ईश्वर ने मनुष्य जाति को उपदेश दिया है, कि वह जितना कुछ पदार्थ प्रकृति से लेता है, उतना उसे लौटाने भी आवश्यक है, मनुष्य उसकी रक्षा करे। उदाहरण के लिए यदि मनुष्य जंगल से लकड़ियां, फल, औषधि आदि लेता है तो उसका कर्तव्य है कि वह अपनी ओर से वृक्ष, पौधे लगाये और जीवन भर उनकी देखभाल करें ताकि आने वाली पीढ़ी इन संसाधनो का लाभ ले सके।
- सनातन धर्म मनुष्यों को निष्काम कर्म करते हुए पुरुषार्थ करने को कहता है। श्री कृष्ण ने भी निष्काम कर्म का अर्थ बताते हुए जीवन जीने को कहा है। जब कोई मनुष्य निष्काम कर्म करता है तो उसके मन से लालच, बुराई, क्रोध, भय, शंका का अंत हो जाता है और वह सदैव शांति की अनुभूति करता है। किसी भी कर्म को करने की स्वतंत्रता मनुष्य के पास है, परंतु उसका फल देना ईश्वर के अधीन है। इसीलिए निष्काम कर्म में मनुष्य कर्म फल के परिणाम के बारे में नहीं सोचता, अपितु लगातार पुरुषार्थ करता रहता है।
- सनातन धर्म ऋग्वेद के माध्यम से कहता है कि, केवलाघो भवति केवलादी, अर्थात जो व्यक्ति अकेला खाता है वह पाप खाता है। मनुष्य को एक दूसरे का ध्यान रखते हुए वस्तुओं, भोजन, पदार्थों का प्रयोग व ग्रहण करना चाहिए. जरूरत से अधिक वस्तु को जीवों की सेवा(दान) में लगा देना चाहिए।
सनातन धर्म के स्त्रोत
सनातन धर्म का मुख्य स्त्रोत ईश्वर है जिसने चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, व अथर्ववेद का निर्माण किया है. ईश्वर ने यह वैदिक ज्ञान सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों को समाधि अवस्था में प्रदान किया है। बाद में इन ऋषियों ने दूसरे अन्य ऋषियों व लोगों को यह ज्ञान कहा। इसके पश्चात ही उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण, दर्शन, ज्योतिष, आदि शास्त्रों का निर्माण हुआ। परंतु इन सभी शास्त्र में शिक्षाएं वेदों से ही ली गई है, साधारण शब्दों में कहते तो वेदों की व्याख्या कर ऋषियों ने नये ग्रंथो का निर्माण किया। यहाँ एक बात ध्यान रखनी आवश्यक है, केवल वेद ही ईश्वर कृत है अन्य सभी शास्त्र ग्रंथ मनुष्य द्वारा बनाये गये है। इसलिए यदि किसी ग्रंथ व पुस्तक में कोई बात व तथ्य वेद विरूद्ध पायी जाती है तो वह सत्य नहीं मानी जाती है।
सनातन धर्म के संदेश
समानता का संदेश
सं ग॑च्छध्वं॒ सं व॑दध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम् ।
दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥ (ऋग्वेद 10.191.2)
ऋग्वेद के इस मंत्र में भगवान सभी मनुष्यों को आदेश करते है, हे मनुष्यों तुम सब साथ मिलकर रहो आपस में विवाद मत करों अपितु संवाद करो। तुम सभी साथ मिलकर शिक्षा ग्रहण कर विद्वान हो जाओ, तुम्हारे मन एक हो जावे, जैसे पूर्व में विद्वानों के थे ताकि एकमन से गुणी होकर तुम संसार के सुख व लाभ भोग सको।
सभी जीवो को मित्र की दृष्टि से देखने का आदेश
दृते॒ दृꣳह॑ मा मि॒त्रस्य॑ मा॒ चक्षु॑षा॒ सर्वा॑णि भू॒तानि॒ समी॑क्षन्ताम्। मि॒त्रस्या॒ऽहं चक्षु॑षा॒ सर्वा॑णि भू॒तानि॒ समी॑क्षे। मि॒त्रस्य॒ चक्षु॑षा॒ समी॑क्षामहे ॥ यजुर्वदे 36.18 ॥
हे जगदीश्वर! जिससे सब प्राणी मित्र की दृष्टि से मुझको सम्यक् देखें, मैं भी मित्र की दृष्टि से सब प्राणियों को सम्यक् देखूँ। इस प्रकार हम सब लोग परस्पर मित्र की दृष्टि से देखें, इस विषय में हमको दृढ़ कीजिये।।
Satyamev Jayate