धर्मनिरपेक्षता(Dharmnirpekshta) शब्द भारतीय संविधान में देखने को मिलता है जो कि 42वे संशोधन 1976 के अंतर्गत जोड़ा गया था। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि धर्म से निरपेक्षता अर्थात धर्म से दूरी. भारतीय संविधान के अनुसार सरकार धर्म के आधार पर लोगों से कोई भेदभाव नहीं करे सभी को समान भाव से देखे। किन्तु धर्म की व्याख्या के सम्बंध में यह तर्क बिलकुल गलत है। धर्म का अर्थ होता है सत्य, इसलिए सत्य से किसी को निरपेक्ष नहीं किया जा सकता है। धर्म का अर्थ होता है धारण करने योग्य. और धारण करने योग्य केवल सत्य है, तो भला धर्म से निरपेक्षता वाली व्याख्या तो बिल्कुल गलत हुई।
संविधान में धर्मनिरपेक्षता की गलत व्याख्या की गई है
भारतीय संविधान कहता है कि सरकार को धर्मनिरपेक्ष रहना चाहिए। अर्थात सरकार धर्म के आधार पर समाज में लोगों से भेदभाव न करे। इसमें लोगों से भेदभाव वाली बात तो सही परंतु धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग बिल्कुल गलत है।
यह कहना कि धर्म से निरपेक्ष रहो अर्थात धर्म से दूरी बना कर रखा. यह कथन बिल्कुल अनुचित व गलत है। 90 प्रतिशत से अधिक व्यक्तियों को धर्म का सही अर्थ पता नहीं है। धर्म शब्द संस्कृत का शब्द है, जो कि वैदिक सनातन से निकला है. इसका मूल अर्थ है सत्य। सत्य ही सभी विद्याओ, नियमों व विचारों का आधार है. जो कुछ भी सत्य के विपरीत है वह सब मिथ्या, झूठ, पाखंड, अन्याय होता है। धर्म के अन्य अर्थ कर्तव्य, और धारण करना भी। यहाँ एक बात विशेष ध्यान करने वाली है, कर्तव्य एवं धारण का अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि असत्य व गलत कार्य को धर्म से जोडा जाये। ऐसा बिलकुल नहीं।
भारतीय उच्चतम न्यायालय कहता है यतो धर्मस्ततो जय:
जब आप भारतीय उच्चतम न्यायालय की टैगलाइन पढेंगे तो वहां पर महाभारत से लिया गया वाक्य है यतो धर्मस्ततो जयः: इसका अर्थ होता है जहां धर्म है वहां जीत है, अर्थात धर्म की ही सदैव विजय होती है। जब उच्चतम न्यायालय धर्म की श्रेष्ठता को स्वीकार करता है तो धर्मनिरपेक्षता शब्द स्वयं ही गलत सिद्ध हो जाता है। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द धर्म की बिना व्याख्या किये जोडा गया है। जिस धर्म की रक्षा के लिए कौरवो व पांडवो के मध्य महाभारत जैसा विध्वंसकारी युद्ध हो गया है भला उस धर्म से कोई कैसे निरपेक्ष हो सकता है। जिस सनातन संस्कृति का मूल धर्म हो उसमें धर्मनिरपेक्ष जैसे गलत शब्द का क्या कार्य है।