अगर, शिक्षा की सबसे सरल परिभाषा देने को कहाँ जाए तो वह परिभाषा क्या हो सकती है। यहाँ शिक्षा की भिन्न-भिन्न तरह की परिभाषाएँ दी जा सकती हैं, परंतु परिभाषा ऐसी होनी चाहिए कि आम नागरिकों की समझ मे आ जाये। कई बार संक्षेप में परिभाषाएँ लिखने पर उनके अर्थ समझना आसान नहीं हो पाता। अतः, परिभाषा सीधे और सरल शब्दों में होनी चाहिए।
शिक्षा का उद्देश्य बौद्धिक स्तर से शारीरिक तल तक मनुष्य का सर्वांगीण विकास करना हैं। अर्थात उसकी सोच की सीमा को विकसित करना हैं। जिससे, वह जीवन का सत्य ज्ञान प्राप्त कर उसे अपने व्यवहार, और आचरण में धारण करें। ऐसा करने से समाज में सही आदर्श-मूल्यों व सदाचार के मार्ग की स्थापना एवं बुराइयों का नाश हो जाता हैं। फलस्वरूप, देश में खुशहाली एवं परम वैभव की अनुभूति का जन्म होता हैं।
व्यक्ति को असभ्य विचारों एवं अज्ञानता के जाल से मुक्त करके, उसे सभ्यता एवं ज्ञान के पथ पर ले जा कर सत्य-असत्य के बीच भेद का बोध कराना ही शिक्षा हैं।
जन्म से, सभी मनुष्य अशिक्षित और असभ्य ही पैदा होते हैं। उचित शिक्षा एवं सही मार्गदर्शन द्वारा उन्हे धीरे-धीरे समय के साथ शिक्षित बनाया जाता हैं। कोई भी मनुष्य एक बार में ही शिक्षित नहीं हो जाता हैं। इस प्रक्रिया में एक लंबा समय लगता हैं।
उदाहरण – किसी वृक्ष को उगाने के लिए एक बीज को मिट्टी में बोते है एवं उसके लिए पर्याप्त धूप, जल, तथा अन्य खनिजों की व्यवस्था करते हैं। एक निश्चित समय पश्चात बीज से अंकुर निकलता हैं, उसके बाद उसका पौधा बनता हैं, और एक लम्बे समय के बाद वह पौधा वृक्ष का रूप धारण करता हैं। उसी प्रकार मनुष्य को भी शिक्षित व सभ्य होने में एक समय प्रक्रिया से गुजरना पड़ता हैं। यही शिक्षा का उद्देश्य हैं।
जीवन में शिक्षा का उद्देश्य क्या है
शिक्षा का उद्देश्य इस प्रकार हैं-
सत्य के मार्ग पर निडरता से चलना
शिक्षा का एक उद्देश्य यह हैं- सभी मनुष्यों को चाहिए कि, बुरे विचारों एवं कृत्यो को छोड़कर सत्य को धारण करे। मन, वाणी अथवा व्यवहार से किसी भी कार्य को करने से पहले, बुद्धि द्वारा इसकी सत्यता की जाँच करना ले। ऐसा करने से मनुष्य पथ-भ्रष्ट होने से बच जाता हैं। हालांकि, सत्य के मार्ग पर चलना अति कठिन कार्य हैं। परंतु, सत्य को जीवन में स्थापित करने से परम सुख व निड़रता की सदैव अनुभूति होती हैं। बच्चों को सच्ची शिक्षा प्रदान करना माता-पिता, अभिभावक और शिक्षकों का प्रथम कर्तव्य हैं। ताकि, समाज में झूठ व लालच के कारण भ्रष्टाचार एवं अन्य बुराइयों का प्रभुत्व होने से रोका जा सके।
मनुष्य के अन्दर स्थित बुराइयों को समाप्त करना
ईर्ष्या, लालच, क्रोध व मोह मनुष्य को जन्म से प्राप्त होते हैं। इनके प्रभाव के कारण मनुष्य में सभी बुराईयों का उदय होता हैं। इसलिए, उचित शिक्षा के माध्यम से मनुष्य के स्वभाव में विराजमान सभी बुराइयों का नियंत्रण करना एवं अच्छी विचारधारा को पोषित(Establish) करना शिक्षा का उद्देश्य हैं। शिक्षा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए बच्चों को बाल्यकाल से ही, घर एवं विद्यालयों में प्रारंभिक शिक्षा के द्वारा- सही जानकारियां प्रदान कर, उनके अच्छे चरित्र निर्माण का कार्य पूरा करना हैं।
भ्रष्टाचार मुक्त समाज की स्थापना करना-
अज्ञानता व अविद्या के कारण व्यक्ति लोभ के प्रति आकर्षित होकर अपने आचरण एवं व्यक्तित्व को भ्रष्ट कर देता हैं। जिस कारण समाज व राज्य में विभिन्न प्रकार की बुराइयों का वर्चस्व तेजी से स्थापित होने जाता हैं। परिणाम यह होता हैं कि, उस समाज की सरकारे और अन्य संस्थाएं भी भ्रष्टाचार की चपेट में आ जाती हैं।
अतः, सच्ची शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य, समाज के सभी व्यक्तियों को सर्वगुण युक्त बनाने, और शाश्वत सत्य की जानकारी उपलब्ध कराना हैं। जिससे समाज के लोग ईमानदार व चरित्रवान सम्पन्न हो जाये। ऐसी शिक्षा को प्राप्त कर लेने से समाज एवं इसके लोग भ्रष्टाटाचार से मुक्त हो जाते हैं।
यद्यपि, भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय करने से तब तक कुछ नहीं होता, जब तक समाज के लोग सही शिक्षा व उसका तन, मन एवं धन से पालन नहीं करते हैं।
मानसिक अज्ञानता को दूर करना-
जब कोई बालक इस धरती पर जन्म लेता है तो, उस समय उसकी बुद्धि एक मूर्ख के समान ही होती हैं। उसके अंदर सोच-विचारने की क्षमता न के बराबर होती हैं। आयु बढ़ने पर भी बालत तब तक अज्ञानी ही रहता है, जब तक उसका सही मार्गदर्शन नहीं किया जाये। इसीलिए, प्राचीन काल में गुरूकुलो की स्थापना की गई थी, ताकि सभी बच्चों को बाल्यकाल से ही शिक्षित और संस्कारी बनाया जा सके। शिक्षा का उद्देश्य, मनुष्य के मस्तिष्क को सही दिशा प्रदानकर जीवन के लक्ष्यों में सफलता प्रदान करना हैं। इन आधारभूत लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को विद्वान शिक्षकों की आवश्यकता होती हैं। एक सच्चा व ज्ञानी शिक्षक ही एक सफल, और शिक्षित समाज का निर्माण करता हैं।
अतः, मनुष्य के भीतर स्थित अज्ञानता रूपी अंधेरे को शिक्षा के प्रकाश द्वारा मिटा देना ही शिक्षा का वास्तविक अर्थ हैं। अज्ञानता के लोप हो जाने से व्यक्ति के अवगुण समाप्त हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति चरित्रवान, सदाचारी और गुणवान होने से समाज में भलाई एवं मानव कल्याण की भावना को समर्पित हो जाता हैं।
अध्यात्म के जरिये मोक्ष की प्राप्ति
अध्यात्म में शिक्षा का विशेष लक्ष्य एवं उद्देश्य हैं। अध्यात्म रूपी ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को सत्य रूपी शिक्षा को ग्रहण करना, और इसके मार्ग पर सदैव तत्पर होकर चलना चाहिए। भारत के ऋषि-मुनि गुरु के नेतृत्व में शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण कर आध्यात्मिक विज्ञान को प्राप्त करते थे। यही विज्ञान उनके मोक्ष का कारण बनता था।
गलत शिक्षा का अनुसरण करने से, आध्यात्मिक लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति असम्भव हैं।
दरिद्रता दूर कर धन अर्जन करने का साधन
शिक्षा का अन्य उद्देश्य, व्यक्तियों की धन संसाधनों की समस्या का उचित समाधान करना हैं। क्योंकि, धन के अभाव में दरिद्रता का जन्म होता हैं। एक दरिद्र समाज कभी भी खुशहाल जीवन प्राप्त नहीं कर सकता हैं। शिक्षा धन के अवसर प्राप्त करने का एक साधन हैं।
शिक्षित व्यक्ति के पास धन अर्जन करने के विभिन्न मार्ग होती हैं। अपनी योग्यता एवं ज्ञान के आधार पर एक शिक्षित व्यक्ति किसी खास क्षेत्र(टीचिंग, व्यापार, रिसर्च, निजी व सरकारी नौकरी) में प्रयाप्त धन कमा सकता हैं। चूंकि, एक ज्ञानी मनुष्य अधिक समय तक गरीब नहीं रह सकता हैं। उसके पास ज्ञान की शक्ति होने के कारण, वह अपने स्किल की गुणवत्ता पर कार्य करके स्वयं का रोजगार अथवा किसी अन्य के पास नौकर व बिजनेस कर सकता हैं।
निरोगी शरीर एवं सुन्दर स्वास्थ्य
पुरानी कहावत हैं- स्वास्थ्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा धन हैं। बीमार व्यक्ति के पास सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं और अच्छा भोजन व औषधियाँ होने के पश्चात भी वह दुखी ही रहता हैं। क्योंकि, एक अस्वस्थ व्यक्ति सदैव शारीरिक कष्ट के कारण मानसिक रूप से पीड़ित रहता हैं।
प्रकृति ने सभी मनुष्य व अन्य जीवों के लिए भोजन के साथ, रोगों के उपचार एवं निरोगी रहने के लिए औषधियों की उचित व्यवस्था की हैं।
प्राचीन भारतीय शिक्षा में आयुर्वेद एवं महर्षि पतंजलि द्वारा लिखित योग-दर्शन में मनुष्य को स्वस्थ रहना की वैज्ञानिक पद्धति बतायी हैं। व्यक्ति की दिनचर्या एवं भोजन व्यवस्था आदि के विषय में विस्तार से उल्लेख किया गया हैं। आयुर्वेद में रोग, उनके कारण व औषधियों द्वारा उपचार की शिक्षा का उल्लेख है। वहीं योग शास्त्र में प्राणायाम और योगासन के माध्यम से शरीर को स्वस्थ एवं निरोगी रखने के तरीके समझाये गये हैं। यह बताया गया है कि, योग में ध्यान करने से किस प्रकार के लाभ होते हैं, एवं मनुष्य योगसाधना व प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से दीर्घायु को प्राप्त कर सकता हैं।
श्रेष्ठ चरित्र निर्माण करना
कहा जाता है कि, धन गया तो समझो कुछ नहीं गया। स्वास्थ्य गया तो समझो कुछ गया। परंतु, मनुष्य का चरित्र गया तो समझो सब कुछ गया। इसलिए, शिक्षा का विशेष फोकस व्यक्ति को अज्ञानता और असभ्यता से निकालकर ज्ञान एवं सभ्यता प्रदान करना हैं।
मनुष्य के अन्दर स्थित सभी प्रकार की बुराइयों- चोरी, झूठ, दुराचार, बेईमानी और बर्बरता आदि को समाप्त करके, उसके अन्दर सत्य, अहिंसा, सदाचार, प्रेम एवं ईमानदारी आदि गुणों का विकास करना ही शिक्षा हैं। संक्षेप में कहे तो, व्यक्ति को दुर्गुणों से निकालकर, सदगुणों को पैदा करना ही शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य हैं। सच्चाई के संकल्प का पालन करने से ही मनुष्य के अन्दर अन्य गुण पैदा होते हैं। यही गुण व्यक्ति के श्रेष्ठ चरित्र निर्माण का कार्य करते हैं।
गुणवान व्यक्ति सर्वत्र पूजा जाता हैं। हर कोई ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा करता हैं। जिस कारण ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति की ख्याति दिन प्रतिदिन नयी ऊंचाइयों को छूती हैं।
वहीं दुष्ट व धूर्त व्यक्ति को कोई पसंद नहीं करता हैं। ना ही उससे कोई बातचीत करना उचित समझता हैं। धूर्त व्यक्ति से जितना दूर रहे उतना ही फायदेमंद होता हैं। ऐसा व्यक्ति कभी भी दूसरों को हानि पहुंचा सकता हैं।
समानता, एकता और उचित न्याय व्यवस्था
सच्ची शिक्षा समाज के सभी लोगों को समानता के सूत्र द्वारा एकता प्रदान कर, उचित न्याय व्यवस्था की साम्यावस्था बनाये रखती हैं। यह ऊँच-नींच, छोटा-बड़ा, और दरिद्र-धनवान आदि के भेद को मिटाकर देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार एवं सुख सुविधाएं की भावना पर जोर देती हैं। जिससे उस देश में न्याय का शासन स्थापित होता हैं। वह देश भेदभाव रहित होकर सुखी जीवन और शांति को प्राप्त करता हैं।
मानव कल्याण की भावना का विकास
शिक्षा का उद्देश्य विश्व के सभी व्यक्तियों में बौद्धिक एवं शारीरिक रूप से सभी के अन्दर स्थित गुणों को पहचानने की विचार शक्ति पैदा करके। सभी में प्रेम भाव और एक-दूसरे के प्रति सहायक बनकर विश्व को आर्थिक, स्वास्थ्य और वैचारिक स्तर पर समृद्ध बनाकर बंधुत्व एवं शांति की भावना विकसित करना हैं।
वास्तव में शिक्षा क्या है
सही मायने में, शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्य समझने में हमें जीवन की कई परिस्थितियों से गुजरना पड़ता हैं। जीवन में हमें विभिन्न ऐसी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं,जो हमे एक सीख दे कर जाती हैं। और जीवन के ये क्षण अनुभव का कार्य करते हैं। जो आगे चलकर नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते हैं। जीवन के अनुभवों से सीखना भी एक प्रकार से शिक्षा ही हैं।
दूसरे शब्दों में कहे तो, शिक्षा का उद्देश्य- मनुष्यों को गलत राह पर जाने से रोकना और सही राह दिखाना हैं। क्योंकि जब तक हमें सही व गलत का ज्ञान नहीं होगा, तब तक हम सार्थक जीवन नहीं जी सकते हैं। ज्ञान, अज्ञान में भेद करना ही शिक्षा का उद्देश्य हैं।
कोई भी गलत कार्य शिक्षा नहीं हो सकता, वो अक्षिशा ही कहलाएगा। शिक्षा वही है जो सही कार्य अथवा सही विचार हैं।
शिक्षा का अर्थ केवल स्कूल या कॉलेज जाना मात्र नहीं हैं। हमारी प्रथम शिक्षा हमारे घर से आरम्भ होती हैं। हमारे माता-पिता, भाई-बहन, आदि घर के अन्य सदस्यों से ही हमें जीवन की प्रारंभिक शिक्षा लेना का अवसर मिलता हैं। उसके पश्चात हमें बाहरी दुनिया अर्थात सामाजिक दुनियाँ में आना पड़ता हैं। भारतीय संस्कृति में माता को पहला गुरू कहा गया हैं। केवल माता ही एक ऐसा गुरू रूप है जो, अपनी संतान के लिए सब कुछ त्याग कर सकती हैं। माता ही संतान को चलने-फिरने लायक, बोलने लायक, आचार-विचार लायक बनाती हैं। तत्पश्चात बालक व बालिकाए सामाजिक जीवन के प्रारम्भिक अवस्था में उतरने योग्य हो जाते हैं।
रोजगार में शिक्षा का महत्व
बहुत से लोगो को लगता है कि शिक्षा का अर्थ केवल एक अच्छा रोजगार पा लेना मात्र हैं। परंतु ऐसा कतई नहीं हैं। एक अच्छा रोजगार मिलना ही केवल शिक्षा का उद्देश्य नहीं, इसके अलावा भी कई ऐसे बिंदु हैं जैसे- उच्च मानसिक स्तर का विकास, समाज में अच्छे बुरे के बीच फर्क समझना, लाभ हानि का ज्ञान होना, परिवार व समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना व उनका निर्वाह करना, देश हित का विचार विकसित होना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना ताकि लोगो को एक अच्छा जीवन दिया जा सके, इसके अलावा प्रकृति संबंधी विचार जैसे पर्यावरण की रक्षा, जल संरक्षण, शुद्ध वायु, जंगलों का संरक्षण एवं विभिन्न प्राकृतिक सम्पदाओ को बनाए रखने के लिए प्रगतिशील होना आदि बहुत सारे महत्वपूर्ण कार्य शिक्षा के उद्देश्य हैं।
अच्छी शिक्षा ग्रहण करके समाज की बुराइयों को खत्म कर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाकर- रोजगार के अवसर उत्पन्न करना, स्वच्छता व स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी करना, लोगों के अन्दर देश-प्रेम व एकता उत्पन्न किया जाना आदि विषय अच्छी शिक्षा पद्धति के अंतर्गत ही आते हैं।