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Prajapati Caste in Hindi : कुम्हार प्रजापति जाति का इतिहास

Prajapati Kumhar Cast History Hindi

Prajapati Caste in Hindi:- आज इस पोस्ट में हमने प्रजापति(कुम्हार) जाति के इतिहास के विषय में जानकारी प्रदान की है। प्रजापति जाति संपूर्ण भारत में पायी जाती है, इस जाति का इतिहास सबसे पुराना है। प्रजापति समाज की उत्पत्ति सृष्टि के आरम्भ में की गई थी। जब प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण करने का निर्णय लिया तो, दक्ष प्रजापति व अन्य प्रजातियों को सृष्टि निर्माण में सहयोग देने के लिए जिम्मेदारी प्रदान की। 

प्रजापति कुम्भाकार ब्रह्मा के मानस पुत्र वंशज है, जिस प्रकार ऋग्वेद 10.90.13 ने कहा है कि- ‘चन्द्रमा मनसो जातः’’ चन्द्रमा की उत्पत्ति ब्रह्मा ने मन(मनन शक्ति) से की उसी प्रकार प्रजापति कुम्हार की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा के मन से हुई। जब भगवान ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति ने कुम्भ का आविष्कार किया तो उसे कुम्भकार कहा गया। कुम्हार को प्रजापति इसलिए भी कहा जाता है कि उसने सृष्टि निर्माण के समय सभ्यता का निर्माण करने में सहायता की। दैनिक उपयोग की सभी वस्तुएं कुम्भकार द्वारा मिट्टी के रूप में बनाई गई। इसमें कुंभ, बर्तन, मूर्ति, आदि सभी का निर्माण मिट्टी से किया गया। कुम्हार जाति ने समाज को बहुत कुछ दिया है, हिंदुओं का कोई भी त्यौहार, परंपरा ऐसी नहीं जो बिना मिट्टी के पात्रों बिना संपन्न हो सके। दीपावली, होली, करवाचौथ, दही हांडी, आदि सभी त्यौहारों में पूजा अनुष्ठान के लिए कुम्हार द्वारा निर्मित मिट्टी के बर्तन ही प्रयोग में लाये जाते है, क्योंकि मिट्टी के बर्तन पवित्र होते है उनमें कोई भी अशुद्धि नहीं होती है, मिट्टी के बर्तन निर्माण करने के लिए स्वयं प्रजापति ब्रह्मा, शिव और विष्णु ने कुम्हार को कमन्डल, जनेऊ, पिंडी और चक्र प्रदान किया था। 

अब Kumhar Prajapati Caste समाज की कुछ विशेषताओं एवं उपलब्धियों के विषय में चर्चा करते है।

कुम्हार(प्रजापति) समाज की उपलब्धियां, गुण

यदि कुम्हार ना होता तो समाज में कोई भी त्योहार, पूजा पाठ, शादी ब्याह आदि कोई भी कार्य संपन्न नहीं हो पाते। इसलिए कुम्हार को प्रजापति कहा गया है, क्योंकि इसके बिना कोई भी रीति रिवाज संपन्न नहीं हो सकते थे।

दीपावली का नाम कुम्हार के नाम पर पड़ा

जब भगवान राम लंका विजय कर अयोध्या आये तो उनके स्वागत में अयोध्यावासियों से ने दीये(दीपक) जला कर प्रसन्नता प्रकट की। क्या आप जानते है यदि कुम्हार न होता तो दीपावली त्यौहार नहीं मनाया जा सकता था, क्योंकि दीपक का निर्माण कुम्हार द्वारा किया जाता है, इसलिए दीपावली का नाम कुम्हार द्वारा बनाए गए दीपक के नाम पर पड़ा। 

दही हांडी त्यौहार का नाम कुम्हार के नाम पर पड़ा

दीपावली की ही तरह दही हांडी त्यौहार का नाम कुम्हार समाज के नाम पर रखा गया है। हांडी को बनाने वाला एक कुम्हार ही होता है, वह मिट्टी का प्रयोग करके हांडी का निर्माण करता है। यदि कुम्हार हांडी का निर्माण ना करता तो दही हांडी प्रथा से समाज वंचित रह जाता।

करवा चौथ का नाम कुम्हार के कारण

जी हाँ यह बात बिल्कुल सत्य है करवा चौथ त्यौहार के पीछे भी कुम्भकार समाज का कारण है, एक कुम्भकार ही मिट्टी का प्रयोग कर करवे(कुम्भ, कलश) का निर्माण करता है। भारत में प्रतिवर्ष करवाचौथ बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में मिट्टी के कलश लोगो द्वारा खरीदे जाते है। यह सब कुम्हार के कारण ही संभव हुआ है, यदि कुम्हार करवे का निर्माण न करता तो करवा चौथ का त्योहार लोग मनाने से वंचित रह जाते।

हुक्के का निर्माणकर्ता

हुक्का समाज में भाईचारे का प्रतीक माना जाता है, गाँव के बड़े बुजुर्ग साथ में बैठकर हुक्का पीते है। लेकिन क्या आप जानते है कि हुक्के का निर्माण करने वाला कुम्हार ही था। हुक्के का शिल्पकार कुम्भकार समाज द्वारा ही किया गया । हुक्के की चिलम और पानी भरने के लिए हुक्का का निर्माण मिट्टी का प्रयोग करके कुम्हार द्वारा ही किया गया, तब जाकर हुक्के का आनंद समाज ने प्राप्त किया।

कुंभ मेले का नाम कुम्हार के नाम पर रखा गया

जब देवता और राक्षस समुद्र मंथन कर रहे थे, तब मंथन से एक कुम्भ प्रकट हुआ था जिसमें अमृत भरा हुआ था। जहाँ जहाँ पर उस कुम्भ से अमृत छलक कर गिरा उस जगह कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। एक कुंभ का निर्माण एक कुंभकार ही करता है, मंथन में जिस पात्र में अमृत निकला था वह एक कुंभ था, इसलिए कुंभकार के नाम पर ही प्रसिद्ध मेला कुंभ का नाम रखा गया। अगर कुम्भकार न होता तो कुंभ मेला का आयोजन असंभव था।

दीपक(दीये) का आविष्कार कर संसार को उजाला प्रदान किया

अगर प्रजापति दीपक ना बनाता तो समस्त संसार को अंधकार में जीवन व्यतीत करना पड़ता और दुनिया के बहुत सारे कार्य अधूरे रह जाते। क्योंकि  सूर्यास्त के पश्चात रात को घोर अंधकार हो जाता है, ऐसे में प्रकाश की अत्यंत आवश्यकता पड़ती है। इसलिए मानव कल्याण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए  कुम्हार ने सभी मनुष्य जाति के लिए मिट्टी से दीपक का आविष्कार किया। इससे सभी के लिए रात्रि में प्रकाश करने की व्यवस्था हो गई, सायकाल व रात्रि के समय दीपक जलाकर लोग घर का कामकाज, पढ़ाई, मनोरंजन आदि करने लगे। 

प्रजापति के दीपक का प्रयोग सभी पूजा अनुष्ठान में किया जाता है

प्रजापति के बिना कोई भी हिन्दू पूजा पद्धति अधूरी है, प्रत्येक पूजा अनुष्ठान करने के लिए मिट्टी से बने बर्तन की आवश्यकता होती है, इसमें विशेषकर मिट्टी के दीपक एवं कलश तो अत्यंत आवश्यक होता है।  

यज्ञ में प्रजापति के नाम की आहुति दी जाती है 

सनातन धर्म में कोई भी पवित्र कार्य करने से पहले यज्ञ करने का विधान है, यज्ञ के बिना कोई भी द्वारा ही पूजा पाठ व अनुष्ठान पूर्ण नहीं माना जाता है। यज्ञ करने के लिए विभिन्न प्रकार के वेद मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, ये मंत्र कोई साधारण नहीं होते इनका एक विशेष महत्व होता है। यज्ञ मंत्रों में प्रजापति नाम से भी मंत्र कहे जाते है। उदाहरण के लिए- 

प्रजापतये स्वाहा। इदमग्नये इदन्नमम।।

प्रजा॑पते॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ जा॒तानि॒ परि॒ ता ब॑भूव । यत्का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ अस्तु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥ (ऋग्वेद 10.121.10)

यहां पर प्रजापति शब्द ईश्वर के लिए प्रयोग किया गया है, किन्तु प्रजापति समाज, उस ब्रह्म के विशेष पुत्र है, क्योंकि कुम्भकार समाज दुनिया का पहला शिल्पकार था, जिसने मनुष्य जाति के लिए सभ्यता निर्माण किया। सभी मनुष्य के लिए रहने, खाने, आदि आवश्यकताओं के लिए मिट्टी का प्रयोग कर घर, मूर्ति, बर्तन, आदि अन्य संसाधनों का निर्माण किया है। इसलिए कुम्भकार समाज को यह सम्माननीय शब्द प्राप्त हुआ है, एवं कुम्भकार को ईश्वर के समक्ष दर्जा दिया गया है।

वेदों में कुम्भकार एवं कुम्भ कला के महत्व का वर्णन मिलता है

चारों वेदों में स्वयं प्रजापति ब्रह्मा ने कुम्भकार व इसके द्वारा निर्मित कुम्भ एवं अन्य वस्तुओं की श्रेष्ठता का वर्णन किया है। ऋग्वेद में 1.116.7, 1.117.6, 1.191.14, 7.33.13, 10.89.7,  यजुर्वेद में 16.27, 30.7 तथा अथर्ववेद में 1.6.4 मंत्रो में कुम्भकार एवं कुम्भ की गुणवत्ता व उपयोगिता का उल्लेख दिया गया है। इन मंत्रो के अलावा भी अन्य कई बार कुम्भ एवं कुम्भकार की महिमा का वर्णन वेदो में देखने को मिल जाता है।

ऋग्वेद में कुम्भ की उपयोगिता का वर्णन 1, 7, 10 वे मंडल के मंत्रो में दिया है

ऋग्वेद में 1.116.7, 1.117.6, 1.191.14, 7.33.13, 10.89.7 में प्रजापति के कुम्भ की महत्वता का स्वयं ईश्वर ने वर्णन किया है। इन मंत्रो की सूची इस प्रकार है-

यु॒वं न॑रा स्तुव॒ते प॑ज्रि॒याय॑ क॒क्षीव॑ते अरदतं॒ पुर॑न्धिम् ।

का॒रो॒त॒राच्छ॒फादश्व॑स्य॒ वृष्णः॑ श॒तं कु॒म्भाँ अ॑सिञ्चतं॒ सुरा॑याः ॥ऋग्वेद 1.116.7॥

तद्वां नरा शंस्यं पज्रियेण कक्षीवता नासत्या परिज्मन्। 

शफादश्वस्य वाजिनो जनाय शतं कुम्भाँ असिञचतं मधूनाम्।। ऋग्वेद 1.117.6।।

त्रिः सप्त मयूर्यः सप्त स्वसारो अग्रुवः। तास्ते विषं वि जभ्रिर उदकं कुम्भिनीरिव।। ऋग्वेद  1.191.14 ।।

ज॒घान॑ वृ॒त्रं स्वधि॑ति॒र्वने॑व रु॒रोज॒ पुरो॒ अर॑द॒न्न सिन्धू॑न् ।

बि॒भेद॑ गि॒रिं नव॒मिन्न कु॒म्भमा गा इन्द्रो॑ अकृणुत स्व॒युग्भिः॑ ॥ ऋग्वेद 10.89.7॥

स॒त्रे ह॑ जा॒तावि॑षि॒ता नमो॑भिः कु॒म्भे रेतः॑ सिषिचतुः समा॒नम् ।

ततो॑ ह॒ मान॒ उदि॑याय॒ मध्या॒त्ततो॑ जा॒तमृषि॑माहु॒र्वसि॑ष्ठम् ॥ ऋग्वेद 7.33.13॥

यजुर्वेद मंत्र 16.27 एवं 30.7 प्रजापति कुम्हार की शिल्पकला का वर्णन है

यजुर्वेद के मंत्र 16.27 एवं 30.7 में प्रजापति कुम्हार का वर्णन किया गया है। यजुर्वेद कहता है नमः॒ कुला॑लेभ्यः अर्थात कुलाल(कुम्हार) को उसकी शिल्प विद्या के कारण नमस्कार करो।

यजुर्वेद 16.27 मंत्र कहता है कुलाल(कुम्हार) को उसकी शिल्प विद्या के कारण नमस्कार करो

नम॒स्तक्ष॑भ्यो रथका॒रेभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नमः॒ कुला॑लेभ्यः क॒र्मारेभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॑ निषा॒देभ्यः॑ पु॒ञ्जिष्ठे॑भ्यश्च वो॒ नमो॒ नमः॑ श्व॒निभ्यो॑ मृग॒युभ्य॑श्च वो॒ नमः॑ ॥२७ ॥

यजुर्वेद 30.7

तप॑से कौला॒लं मा॒यायै॑ क॒र्मार॑ꣳ रू॒पाय॑ मणिका॒रꣳ शु॒भे वप॒ꣳ श॑र॒व्या᳖याऽइषुका॒रꣳ हे॒त्यै ध॑नुष्का॒रं कर्म॑णे ज्याका॒रं दि॒ष्टाय॑ रज्जुस॒र्जं मृ॒त्यवे॑ मृग॒युमन्त॑काय श्व॒निन॑म् ॥७ ॥

अथर्ववेद 1.6.4 मंत्र में कुम्भ के जल को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

अथर्ववेद के मंत्र 1.6.4 में कुम्हार के कुंभ का वर्णन आता है। इसमें कुंभ के जल को सभी मनुष्यों के लिए उत्तम बताया गया है।

 शं न॒ आपो॑ धन्व॒न्या॑३ शमु॑ सन्त्वनू॒प्याः॑।

 शं नः॑ खनि॒त्रिमा॒ आपः॒ शमु॒ याः कु॒म्भ आभृ॑ताः।

 शि॒वा नः॑ सन्तु॒ वार्षि॑कीः ॥ अथर्ववेद 1.6.4॥

प्रजापति कुम्हार को भगवान विष्णु ने अपना चक्र, ब्रह्मा ने जनेऊ, शिव ने पिंडी(शिवलिंग) प्रदान की।

सभ्यता का निर्माण एवं मानव कल्याण आवश्यकता हेतु उस ईश्वर(प्रजापति) ने अन्य प्रजापति को उत्पन्न किया। ताकि सभी मनुष्यों के रहने खाने, सोने, कार्य करने, पूजा अनुष्ठान आदि के लिए दैनिक एवं विशेष प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं, चीजों तथा संसाधनों का निर्माण किया जा सके। इन सभी कार्यों को सिद्ध करने के लिए साधन के रूप में कुम्हार समाज को भगवान विष्णु ने अपना चक्र, भगवान ब्रह्मा ने अपना जनेऊ आदि, एवं भगवान शिव ने शिवलिंग पिंडी प्रदान की। तब जाकर कुम्हार ने त्रिदेवों द्वारा प्रदान किये गये साधनों से मनुष्य जाति व अन्य जीवों के लिए वस्तुओं का निर्माण किया। 

सबसे पहले प्रजापति ब्रह्मा ने. प्रजापति कुम्भकार को वस्तुएं बनाने के लिए अवतरित किया। जब पृथ्वी पर सब कुछ व्यवस्था पूर्ण हो गई तो उसके पश्चात मनुष्यों को इस धरती पर जन्म दिया गया। क्योंकि अगर मनुष्य पहले जन्म लेता और उसके रहने, खाने, आदि के साधन न होते तो उसका सही से जीवन निर्वाह न हो पाता । इसलिए कुम्हार द्वारा पहले दैनिक संसाधनों का निर्माण किया गया, उसके पश्चात जब सब सुविधाएं बन गई तो भगवान ब्रह्मा ने मनुष्यों को इस धरती पर जन्म दिया। 

कुम्हार भगवान ब्रह्मा की तरह पंच तत्वों से वस्तुओं का निर्माण करता है

प्रजापति समाज को पंच तत्वों से निर्माण करने की कला, उस परमपिता ब्रह्मा द्वारा प्रदान की गई है। जिस प्रकार ब्रह्मा प्रकृति के पांच तत्व जल, अग्नि, वायु, आकाश, भूमि का प्रयोग कर सभी जीवों एवं सृष्टि की रचना करता है, इन्हीं पांच तत्वों का प्रयोग करने कुम्हार सभी वस्तुओं का निर्माण करता है। ब्रह्मा एवं कुम्हार में केवल इतना अन्तर है कि ब्रह्मा पंचतत्व में आत्मा डाल सकते है, किन्तु कुम्हार पंचतत्व से वस्तु तो बना सकता है, परंतु उसमें जीव नहीं डाल सकता है। यह अधिकार केवल ईश्वर को है। 

केवल कुम्भकार समाज ही मिट्टी के बर्तन को शुद्ध रूप दे सकता है, अन्य नहीं

यह बात समझनी अत्यंत आवश्यक है कि, सृष्टि के आरम्भ में  वस्तुओं का निर्माण करने के लिए प्रजातियों को उत्पन्न किया गया। क्योंकि, सभी प्रजापति के गुण-कर्म-स्वभाव भगवान ब्रह्मा से समानता होने कारण इसके द्वारा बनाई गई वस्तुओं को शुद्ध माना गया। बिना कुम्हार के कोई भी जन्म, मरण, विवाह, यज्ञ पूजा अनुष्ठान व पद्धति प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक पूर्ण नहीं हो सकती है। कुम्हार द्वारा बनाये गये कलश, व अन्य वस्तुओं की आवश्यकता सभी सनातन समाज को अवश्य पड़ती है। 

कुम्हार के अलावा अन्य कोई मिट्टी के वस्तुएं बनाए तो व शुद्ध नहीं मानी जाती।

भौतिकवादी वर्तमान सभ्यता में आज कुम्हार समाज आर्थिक व राजनीतिक रूप से पिछड़ गया है। वर्तमान समय में ऐसी बहुत सी मशीन तकनीक आ गई है जिसका प्रयोग करके मिट्टी की वस्तुएं बनायी जा सकती है, आज प्रजापति समाज के अलावा अन्य समाज के लोग मिट्टी की वस्तुओं का निर्माण कर रहे है। किन्तु यह बात याद रखना अति आवश्यक है, कि कुम्हार का अवतरण विशेष कार्यों को पूरा करने के लिए हुआ है,

कुम्हार का रक्त भगवान ब्रह्मा के समान शुद्ध(Pure) है। कुम्हार के गुण-कर्म-स्वभाव भी उस प्रजापिता ब्रह्मा के समान ईमानदार, निष्पक्ष, शांत, धैर्यवान, दयालु, आदि गुण वाले ही है। जो कि अन्य समाज में पूर्ण रूप से नहीं मिलते है, इसलिए अगर कोई अन्य समाज का व्यक्ति मिट्टी से वस्तुओं का निर्माण कर भी लेता है तो उस वस्तु में कोई न कोई अशुद्धि तो आ ही जाती है। 

ज्योतिष शास्त्र की 12 राशियों में एक राशि  कुम्हार के कुंभ नाम पर है

सनातन धर्म में राशियों का बहुत महत्व है, ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के गुण स्वभाव उसकी राशि के अनुसार देखे जाते है। ज्योतिष में कुल 12 राशियां जिनमें से एक राशि का नाम कुम्भ है। कुम्भ का बनाने वाला कुम्भकार होता है, अतः कुम्हार के द्वारा बनाये गये कुम्भ के नाम पर इस राशि का नाम रखा गया है।

योग में कुम्हार के कुंभ के नाम पर ही कुम्भक प्राणायाम का नाम रखा गया है।

योग शास्त्र में विभिन्न प्रकार के आसन व प्राणायाम देखने को मिल जाते है। जिनमें से कुम्भक प्राणायाम भी एक है, इसका नाम प्रजापति कुम्हार के कुम्भ के नाम पर रखा गया है।

रामायण में महाराज मनु को प्रथम प्रजापति कहकर सम्बोधित किया गया है।

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में ब्रह्माजी के पुत्र मनु को प्रथम प्रजापति कहकर सम्बोधित किया है। नीचे दिये गये रामायण के इस कथन में मनु प्रजापति का विवरण इस प्रकार देखने को मिलता है।

मनुः प्रजापतिः पूर्वमिक्ष्वाकुस्तु मनोः सुतः। तमिक्ष्वाकुमयोध्यायां राजानं विद्धि पूर्वकम् ।। वाल्मिकी रामायण (एकोनत्रिंशः सर्गः 18)

जैसा कि हम सब जानते है कि प्रजापति नाम ब्रह्मा जी का है, अतः मनु महाराज भी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र होने के कारण एक प्रजापति थे, जिसकी पुष्टि स्वयं महर्षि वाल्मीकि जी रामायण में मनु को प्रथम प्रजापति कहकर कर दी है।

हमने यहाँ कुम्हार के मात्र कुछ ही कार्यों का वर्णन किया इसके अलावा भी कुम्हार समाज के अन्य श्रेष्ठ कार्य  एवं गुण है।

कुम्हार कौन सी जाति(caste) होती है?

वास्तव में कुम्हार कोई जाति नहीं होती है और ना ही कुम्हार किसी कास्ट अथवा वर्ण में आते है, क्योंकि कुम्हार प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र है, जिस प्रकार ऋग्वेद 10.90.13 ने कहा है कि- ‘चन्द्रमा मनसो जातः’ चन्द्रमा की उत्पत्ति ब्रह्मा ने मन(मनन शक्ति) से की उसी प्रकार प्रजापति कुम्हार की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा के मन से हुई। इसलिए उन्हें ब्रहृवंशी कहते है। प्रजापति दक्ष से संबंध होने के कारण उन्हें दक्षवंशी भी कहा जाता है। सरल शब्दों में कहे तो प्रजापति के भीतर चारों वर्ण समाये है, जब प्रजापति वेदों की शिक्षा को पढ़कर उसका अनुसरण करे तो वह ब्राह्मण, जब धर्म की रक्षा करें तो क्षत्रिय, जब धन अर्जन व शिल्पकला करे तो वैश्य, और अपनी शिल्प विद्या द्वारा समाज की सेवा करने से शूद्र.

कुम्हार समाज के राजा(महाराजा) कौन है ?

ब्रह्मा के मानस पुत्र महाराज दक्ष प्रजापति कुम्हार समाज के महाराज है। दक्ष प्रजापति को परमपिता ब्रह्मा ने समाज के निर्माण और सभ्यता की स्थापना का उत्तरदायित्व प्रदान किया था।  इसलिए कुम्भकार समाज को ब्रह्मवंशी और दक्ष वंशी कहते है।

कुम्हार को चाक(चक्र) कैसे मिला?

कुम्हार को चाक भगवान विष्णु के कारण प्राप्त हुआ। भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र, ब्रह्मा ने कमंडल व जनेऊ एवं शिव ने पिंडी प्रदान की। इन सब साधनों का प्रयोग करके कुम्हार ने मिट्टी के बर्तन तैयार किये।

कुम्हार को प्रजापति की उपाधि क्यो प्रदान की गई?

जब ब्रह्मा जी द्वारा संसार की रचना की जा रही थी,तो पृथ्वी पर सभ्यता की स्थापना के लिए ब्रह्मा जी ने शिल्पकला का उत्तरदायित्व कुम्हार को सौंपा था। मनुष्यों की उत्पत्ति से पूर्व उनके प्रतिदिन प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं का निर्माण करने का दायित्व कुम्हार की कला से ही होना था।
सृष्टि के आरम्भ में दैनिक प्रयोग की सभी वस्तुएँ, घर, गोदाम, पूजा के पात्र, मूर्ति आदि का निर्माण मिट्टी से ही किया जाता था। धातु प्रयोग का चलन बहुत समय बीत जाने के बाद हुआ है। प्रजापति ब्रह्मा जिस तरह पंच तत्वों से जीव का निर्माण करते है, उसी प्रकार कुम्हार उन्हीं पंच तत्वों का प्रयोग कर मिट्टी की वस्तुओं का निर्माण करता है। कुम्हार व महाराजा दक्ष  ब्रह्मा जी के मन से उत्पन्न हुए थे और इनके कार्य भी ब्रह्रा जैसे थे, इसलिए इन्हे ब्रह्मा जी का वंशज होने के कारण प्रजापति कहा गया।

प्रजापति जाति का इतिहास

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