वेद ईश्वरकृत(ईश्वर द्वारा बनाया गया ज्ञान) है अर्थात ईश्वर द्वारा लिखे गये है। सर्वप्रथम इनकी प्राप्ति चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को हुई थी। जब इन ऋषियों ने ईश्वर में ध्यान लगाया तो, समाधि अवस्था में चारों ऋषियों को एक-एक वेद का ज्ञान परमात्मा ने प्रदान किया। अग्नि ऋषि को ऋग्वेद, वायु को यजुर्वेद, आदित्य को सामवेद व अंगिरा को अथर्ववेद का पूर्णतः ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके पश्चात एक ऋषि ने दूसरे ऋषि को आपस में ऋग, यजु, साम और अथर्ववेद का ज्ञान प्रदान किया। बाद में इन चार ऋषियों के माध्यम से यह वैदिक ज्ञान विज्ञान अन्य लोगो व प्रजा तक पहुँचा। प्राचानी काल में वेदों को लिखने के बजाय सुनकर याद कर लिया जाता था इसलिए इन्हे श्रुति भी कहते है। यजुर्वेद के मंत्र 31.7 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चारों वेद ऋग, यजु, साम, व अथर्ववेद उस परम ऐश्वर्य के स्वामी ब्रह्मा से उत्पन्न हुए है।
तस्मा॑द्य॒ज्ञात् स॑र्व॒हुत॒ऽऋचः॒ सामा॑नि जज्ञिरे। छन्दा॑सि जज्ञिरे॒ तस्मा॒द्यजु॒स्तस्मा॑दजायत ॥यजुर्वेद 31.7 ॥
हे मनुष्यो ! तुमको चाहिये कि उस पूर्ण अत्यन्त पूजनीय जिसके अर्थ सब लोग समस्त पदार्थों को देते वा समर्पण करते उस परमात्मा से ऋग्वेद, सामवेद, उत्पन्न होते. उस परमात्मा से (छन्दांसि) अथर्ववेद उत्पन्न होता और उस पुरुष से यजुर्वेद उत्पन्न होता है, उसको जानो।
सर्वप्रथम वेद को जानने वाले चार ऋषि
अग्नि ऋषि ने ऋग्वेद लिखा
जब अग्नि ऋषि ईश्वर की प्रेरणा से समाधि को प्राप्त हुए, तो ईश्वर ने इन्हे पहले वेद ऋग्वेद का संपूर्ण ज्ञान प्रदान किया। ऋग्वेद के मंत्रों को ऋचा कहा जाता है, इस वेद में सब पदार्थ आदि के गुणों का वर्णन किया गया है, इसमें सूर्य, चन्द्र आदि लोक का निर्माण आदि अन्य विषयों के संबंधित मंत्र आये है। इसमें कुल मण्डल 10, 1028 सूक्त व 10552 मंत्र है। इस वेद का उपवेद आयुर्वेद है।
वायु ऋषि ने यजुर्वेद लिखा
ईश्वर ने यजुर्वेद का ज्ञान सर्वप्रथम वायु ऋषि को प्रदान किया था, वायु ऋषि को भी समाधि अवस्था में परमेश्वर ने यजुर्वेद ज्ञान का व्याख्यान किया तथा इस वेद का संपूर्ण ज्ञान प्रदान किया। यजुर्वेद का विषय ब्रह्मविद्या, ईश्वर, सृष्टि, यज्ञ आदि का वर्णन देखने को मिलता है। इसमें कुल 40 अध्याय व 1975 मंत्र है, इसका उपवेद धनुर्वेद है।
आदित्य ने सामवेद लिखा
सामवेद का ज्ञान प्रदान करने के लिए ईश्वर ने आदित्य ऋषि को चुना था, अग्नि व वायु ऋषि की भांति ही आदित्य ऋषि ने समाधि को प्राप्त कर सामवेद का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त किया था। सामवेद चारो वेदों में मंत्रो की संख्या दृष्टि से सबसे छोटा वेद है, परंतु इसका महत्व अन्य वेदों की तुलना में कम नहीं है। इसमें उपासना, संगीत विद्या आदि संबंधी विषय देखने को मिलते है, तथा इसमें कुल 1875 मंत्र व इसका उपवेद गंधर्ववेद है।
अंगिरा ऋषि ने अथर्ववेद लिखा
अथर्ववेद का ज्ञान प्रदान करने के लिए परमात्मा ने अंगिरा ऋषि को चुना, जब अंगिरा ने ईश्वर का ध्यान लगाकर समाधि को प्राप्त किया, तब उस दयालु ईश्वर ने अथर्ववेद का ज्ञान अंगिरा ऋषि को पूर्णतः प्रदान किया। अथर्ववेद में कुल 20 काण्ड, 731 सूक्त तथा 5977 मंत्र है, और इसका उपवेद अर्थवेद है। अथर्ववेद में धर्म, काम, तथा अर्थ के विषय में वर्णन मिलता है। इसके अलावा इस वेद में औषधियों, ब्रह्मचर्य, बुद्धि, युद्ध कला आदि का विशेष ज्ञान देखने को मिलता है।
ईश्वर ने सर्वप्रथम अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को ही वेद ज्ञान क्यो दिया?
क्योकि जब ईश्वर सृष्टि उत्पत्ति करते है, तो पूर्व जन्मों के आधार पर जिन चार व्यक्तियों ने सर्वश्रेष्ठ कर्म किये हो उन्ही को ईश्वर चार वेदों का ज्ञान प्रदान करते है। यह चक्र कभी न समाप्त होने वाला है, अर्थात जब-जब प्रलयकाल के पश्चात सृष्टि उत्पत्ति होती है, तब-तब किन्हीं चार सर्वश्रेष्ठ ऋषियों को सर्वप्रथम वेद का ज्ञान प्राप्त होता है।
क्या प्रलय काल में वेद नष्ट हो जाते है?
नहीं, बिल्कुल नहीं, वेद शाश्वत है, सत्य का प्रकाश करने वाले है, यह परमात्मा का अमिट ज्ञान, विज्ञान है। चाहे प्रलय हो या फिर सृष्टि निर्माण वेदों का अस्तित्व सदैव एक जैसा बना रहता है। प्रलय काल में भी वेद ज्यों के त्यों परमेश्वर के अधीन बने रहते है। वास्तव में वेदों के मंत्रों से ही ब्रह्माण्ड की उतपत्ति व नाश होता है।
वेदों का श्रुति क्यों कहते है?
श्रुति का अर्थ होता है, सुनना ! प्राचीन काल में भारत में शिक्षा के लिए गुरुकुल व्यवस्था थी, जिसमें गुरु वेदों को बोलकर अपने शिष्यों को समझाते और शिष्य केवल सुनकर ही उन्हे कंठस्थ कर लेते थे। अथार्त उन्हे लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी, केवल सुनकर ही स्मरण कर लेते थे, इसलिए वेदों को श्रुति कहा गया है।